बिहार एक बार फिर गंभीर बाढ़ संकट से जूझ रहा है। हर साल की तरह इस साल भी स्थिति विकट होती जा रही है, लेकिन इस बार समस्या और भी ज्यादा भयावह लग रही है। गंडक नदी में बढ़ता जलस्तर और मसान नदी के किनारों पर तेज़ी से हो रहा कटाव राज्य के कई जिलों में तबाही की चेतावनी बनकर सामने आया है। बाढ़ ने न सिर्फ लोगों की खेती-बाड़ी, बल्कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी और जनसुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया है।
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गंडक नदी का कहर
गंडक नदी में जलस्तर लगातार बढ़ रहा है। जलभराव की वजह से गांवों की हालत बेहद खराब है। निचले इलाकों में बसे हजारों परिवारों को सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। तटबंधों पर जबरदस्त दबाव बना हुआ है, जिससे उनके टूटने का खतरा और बढ़ गया है।
मसान नदी का भयानक कटाव
मसान नदी के किनारे बसे गांवों की हालत सबसे ज्यादा चिंताजनक है। यहां मिट्टी का कटाव इतनी तेज़ी से हो रहा है कि अब तक दर्जनों घरों और खेतों के बहने की खबरें आ चुकी हैं। स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक, अगर कटाव को समय पर नहीं रोका गया तो पूरा इलाका बर्बाद हो सकता है।
ग्रामीणों का प्रशासन पर आरोप
इस संकट के बीच ग्रामीणों ने प्रशासन और सरकार पर घोर लापरवाही का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि बाढ़ और तटबंधों को लेकर सिर्फ कागज़ी कार्रवाई होती है, जबकि ज़मीन पर कोई ठोस इंतज़ाम नहीं किया गया है।ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि बांध और तटबंध निर्माण में भारी घोटाला हुआ है। अगर समय रहते सही इंजीनियरिंग और गुणवत्ता के साथ तटबंध बनाए जाते, तो आज इतने बड़े स्तर पर बर्बादी नहीं होती। कई ग्रामीण संगठनों ने इस पर सरकारी जांच की भी मांग की है।
बाढ़ राहत और मुआवज़े की मांग
बाढ़ पीड़ित अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और जिला प्रशासन से सीधी मदद की गुहार लगा रहे हैं। उनकी मुख्य मांगें हैं:
- तत्काल राहत शिविरों की स्थापना
- प्रभावित परिवारों के लिए भोजन, दवाइयाँ और सुरक्षित आश्रय
- कटाव नियंत्रण के लिए युद्धस्तर पर कदम
- जिनकी जमीन और घर बर्बाद हो गए हैं, उन्हें मुआवज़ा
- स्कूल, अस्पताल और रास्तों की मरम्मत और पहुंच सुविधा
बाढ़: एक सालाना संकट या राजनीतिक मुद्दा?
बिहार में बाढ़ कोई नई बात नहीं है। हर साल लाखों लोग इससे प्रभावित होते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या यह एक प्राकृतिक आपदा मात्र है या प्रशासनिक विफलता का परिणाम?राजनीतिक विश्लेषक और सामाजिक कार्यकर्ता मानते हैं कि बाढ़ अब एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है, जिसका इस्तेमाल सिर्फ चुनावों के दौरान किया जाता है। सच्चाई यह है कि आज भी बिहार में बाढ़ प्रबंधन के लिए सुनियोजित और दीर्घकालिक नीति का अभाव है।
समय रहते एक्शन ज़रूरी
बिहार सरकार को चाहिए कि वह इस साल की बाढ़ को चेतावनी की तरह लेकर तुरंत एक एक्शन प्लान लागू करे। इसमें स्थायी तटबंध निर्माण, समय पर राहत कार्य, और प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा जैसी पहलें शामिल हों। अगर जल्द कदम नहीं उठाया गया, तो यह संकट एक भीषण मानव त्रासदी में बदल सकता है।
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