भोपाल: मालेगांव ब्लास्ट केस से बरी होने के बाद साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर एक बार फिर सुर्खियों में हैं। इस बार वजह है उनका विवादित बयान, जो उन्होंने भोपाल पहुंचने के बाद मीडिया से बातचीत के दौरान दिया। बयान इतना तीखा था कि देश की सियासत में तुरंत गर्माहट आ गई।
भोपाल में हुआ भव्य स्वागत
मालेगांव केस से बरी होने के बाद जब पूर्व बीजेपी सांसद साध्वी प्रज्ञा भोपाल पहुंचीं, तो उनके समर्थकों ने भारत माता की जय और जय श्रीराम के नारों के साथ उनका भव्य स्वागत किया। फूल-मालाएं और जयघोष के बीच माहौल पूरी तरह राजनीतिक दिखा।लेकिन इसके तुरंत बाद, साध्वी प्रज्ञा ने मीडिया से जो बयान दिया, उसने विवादों की चिंगारी को हवा दे दी।विवादित बयान क्या था?कौन कहता है कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता? आतंकवाद का रंग हरा होता है। हरे रंग के झंडे के नीचे आतंकवाद फैलाया जाता है। मुसलमान आतंकवाद होता है, ये निश्चित है। साध्वी प्रज्ञा ठाकुर साध्वी का यह बयान तुरंत ही राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया। सोशल मीडिया से लेकर टीवी डिबेट तकहर जगह इसी पर बहस शुरू हो गई।
धार्मिक उन्माद या निजी दर्द की अभिव्यक्ति?
साध्वी प्रज्ञा करीब 17 साल तक मालेगांव ब्लास्ट केस में आरोपी रहीं। हाल ही में NIA कोर्ट ने उन्हें सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। उन्होंने इस मामले को “राजनीतिक षड्यंत्र” बताते हुए कांग्रेस पर हमला बोला।मुझे झूठे केस में फंसाया गया। कांग्रेस ने ‘भगवा आतंकवाद’ की स्क्रिप्ट रची थी, जो टिक नहीं सकी साध्वी प्रज्ञा
कांग्रेस और दिग्विजय सिंह पर सीधा हमला
साध्वी ने कांग्रेस पार्टी और खास तौर पर दिग्विजय सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि दिग्विजय सिंह पूरी तरह दिग्भ्रमित हैं। कांग्रेस विधर्मी मानसिकता को बढ़ावा देती है। वो आतंकवादियों के लिए आँसू बहाती है और हिंदुओं को प्रताड़ित करती है।”
बयान का सामाजिक असर और राजनीतिक चिंता
जहां अदालत ने उन्हें केस से बरी कर दिया, वहीं उनके ताज़ा बयान ने सांप्रदायिक तनाव और धार्मिक ध्रुवीकरण की चिंता बढ़ा दी है।क्या एक जनप्रतिनिधि को ऐसा बयान देना चाहिए?क्या यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है या धार्मिक उकसावा?क्या इससे समाज में नफरत फैल सकती है?क्या इससे देश की एकता और भाईचारा प्रभावित हो सकता है?
आपका क्या कहना है?
क्या आपको लगता है कि साध्वी प्रज्ञा का यह बयान न्यायिक फैसले से मिली राहत के बाद आया गुस्से का इज़हार है? या फिर यह राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है?
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