November 13, 2025

असम में बहुविवाह पर सख्त कानून ‘असम पॉलीगेमी निषेध बिल 2025’ को मिली मंजूरी

असम सरकार ने एक ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए ‘असम पॉलीगेमी निषेध बिल 2025’ को मंजूरी दे दी है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने घोषणा करते हुए कहा कि इस नए कानून का उद्देश्य राज्य में बहुविवाह की प्रथा को पूरी तरह समाप्त करना है। यह बिल 25 नवंबर को असम विधानसभा में पेश किया जाएगा, जहां इसे औपचारिक रूप से पारित किए जाने की संभावना है।

क्यों लाया गया यह बिल?

असम सरकार के मुताबिक, राज्य के कई इलाकों में बहुविवाह की प्रथा सामाजिक, आर्थिक और मानसिक समस्याओं को जन्म दे रही थी। कई महिलाएं इस प्रथा के कारण उपेक्षा, हिंसा, आर्थिक असुरक्षा और मानसिक तनाव का सामना कर रही थीं।
इस स्थिति को देखते हुए सरकार ने एक ऐसे क़ानून की जरूरत महसूस की जो महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और अधिकारों की रक्षा कर सके।

बिल में क्या हैं मुख्य प्रावधान?

1. दूसरा विवाह करने पर रोक:
कोई भी व्यक्ति तब तक दूसरा या तीसरा विवाह नहीं कर सकेगा, जब तक उसका पहला विवाह कानूनी रूप से समाप्त न हो जाए।
यानी तलाक या पति/पत्नी की मृत्यु के बिना बहुविवाह पूरी तरह अवैध माना जाएगा।

2. कठोर सजा और दंड:
अगर कोई व्यक्ति कानून का उल्लंघन करते हुए दूसरा विवाह करता है, तो उसे 7 साल तक की सजा और कठोर दंड का सामना करना पड़ सकता है।सरकार ने संकेत दिए हैं कि यह सज़ा कड़ा संदेश देने के लिए जरूरी है, ताकि कुप्रथा पर रोक लगे।

3. महिलाओं को मुआवजा:
बहुविवाह से पीड़ित महिलाओं को मुआवजा देने का भी प्रावधान रखा गया है।यह मुआवजा महिलाओं की मदद के लिए रखा गया है, जिन्हें इस प्रथा के कारण मानसिक, सामाजिक और आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता है।

सामाजिक बदलाव की दिशा में बड़ा कदम

यह बिल न केवल कानूनी सुधार है, बल्कि एक बड़ा सामाजिक संदेश भी भेजता है—कि महिलाओं के अधिकार सर्वोपरि हैं और उनकी सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा।राज्य सरकार का दावा है कि यह कानून समाज में समानता, पारिवारिक स्थिरता और महिलाओं की गरिमा को बनाए रखने के लिए जरूरी था।

राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया

जहां कई सामाजिक संगठनों ने इस बिल का स्वागत किया है, वहीं कुछ वर्ग इसे धार्मिक और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे से जोड़कर देख रहे हैं।हालाँकि, सरकार का कहना है कि यह कानून सभी समुदायों पर समान रूप से लागू होगा और किसी विशेष धार्मिक या सामाजिक समूह पर केंद्रित नहीं है।

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