दिल्ली के मद्रासी कैंप इलाके में एक बार फिर बुलडोजर गरजा, और इसके साथ ही कई परिवारों की ज़िंदगी बिखर गई। कोर्ट के आदेश का हवाला देते हुए प्रशासन ने इन झुग्गियों को हटाया, जो बारापुला नाले के किनारे अवैध रूप से बसी थीं। सरकारी तर्क है कि 2023 जैसी बाढ़ से बचने के लिए नाले की सफाई जरूरी है, और ये बस्तियाँ इस काम में बाधा हैं।
यह पहली बार नहीं है जब दिल्ली में अतिक्रमण के नाम पर गरीबों को बेघर किया गया हो। अदालत के आदेशों को प्रशासन अपना कवच बनाता है, मगर सवाल उठता है कि क्या इन लोगों के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था की गई? या यह कार्रवाई बिना मानवीय पहलुओं को ध्यान में रखे महज़ कागजी आदेशों के आधार पर हुई?
गरीबी और पुनर्वास: टूटते घरों की कोई गिनती नहीं?
हर बार की तरह इस बार भी झुग्गियाँ तोड़ने से पहले पुनर्वास की बात सिर्फ़ कागजों तक ही सीमित रही। मद्रासी कैंप की बस्तियों में रहने वाले लोग वर्षों से यहां बसे हुए थे। कुछ लोग रेहड़ी-पटरी चलाते थे, कुछ घरेलू कामगार थे। लेकिन उन्हें हटाते वक्त सरकार ने कोई वैकल्पिक घर, जमीन या मुआवज़े की बात नहीं की।
शहर के बीचोंबीच रहने वाले इन लोगों के लिए कोई नया ठिकाना नहीं है। जिनके बच्चे पास के स्कूलों में पढ़ते थे, उनका भविष्य अब अधर में लटक गया है।
इस कार्रवाई पर कई सामाजिक संगठनों और विपक्षी दलों ने आपत्ति जताई है। उनका कहना है कि बस्तियाँ हटाने से पहले पुनर्वास की उचित व्यवस्था करना सरकार की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है।
विकास बनाम मानवता: किसका पक्ष ले जनता?
सरकार का पक्ष साफ है – यह एक अदालत का आदेश है जिसे मानना अनिवार्य है। लेकिन यही सरकार विकास के नाम पर मॉल, टावर और हाइवे बनाने से पहले सालों की योजना बनाती है, मुआवज़ा तय करती है, जनसुनवाई करती है। फिर गरीब बस्तियों पर कार्रवाई करते वक़्त यह सब प्रक्रिया क्यों नहीं अपनाई जाती?
यह सवाल लोगों को अंदर तक झकझोर रहा है – क्या न्याय का मतलब सिर्फ कागज़ी आदेशों का पालन है, या इसमें संवेदना की भी जगह होनी चाहिए?
सोशल मीडिया पर भी प्रतिक्रिया दो ध्रुवों में बंटी हुई है। कुछ लोग इसे “जरूरी विकास” बता रहे हैं, वहीं कुछ इसे “गरीबों की बेदखली” करार दे रहे हैं। #DelhiDemolition और #RehabilitationRights जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं।
अदालत, प्रशासन और समाज – किसकी ज़िम्मेदारी भारी?
दिल्ली में अतिक्रमण हटाना ज़रूरी हो सकता है, लेकिन उससे पहले सरकार की ज़िम्मेदारी है कि वह हर नागरिक को सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार सुनिश्चित करे। विशेष रूप से जब बात जीवन और आश्रय की हो।
अगर अदालत के आदेश पर झुग्गियाँ हटाई जाती हैं, तो यह भी सरकार की नैतिक और संवैधानिक ज़िम्मेदारी है कि वह इन लोगों को पुनर्वास दे, ताकि वे सड़कों पर न सोएं।
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