October 15, 2025

IIT कानपुर में धीरज सैनी की मौत: हलवाई का बेटा बन न सका इंजीनियर…

बरेली के एक छोटे से परिवार के बेटे धीरज साहू ने बचपन से ही अपने जीवन संघर्ष में संघर्ष किया। पिता हलवाई और चाचा ठेले पर मेहनत करने वाले थे। ऐसे ही प्राचीन काल से ही द्रोपदी धैर्य ने भारत के शीर्ष इंजीनियरिंग संस्थान आईआईटी कानपुर में दाखिला लिया। ये सिर्फ उनका सपना नहीं था, बल्कि पूरे परिवार की उम्मीद थी।

गरीबी की जंजीरों को साबित कर दिया कि कड़ी मेहनत और समर्पण से हर मंजिल पाई जा सकती है। लेकिन इसी तरह सफलता के बीच धैर्य का जीवन अधूरा रह गया।

तीन दिन तक हॉस्टल रूम में पड़ा रहा शव

धीरज का शव उसके आईआईटी कानपुर के हॉस्टल के कमरे में तीन दिन तक लटका रहा और किसी को भी उसकी बंदूक तक नहीं लगी। जब दरवाजा नहीं खुला तो पुलिस और प्रशासन को बुलाया गया। कमरे से न कोई सुसाइड नोट मिला और न ही कोई आखिरी मैसेज। इस मछली पकड़ने वाली मशीन ने अपने जान को और भी रहस्यमयी बना दिया।

क्या सिस्टम ने किया धीरज को अकेला?

धीरज ने कई बार रिश्तेदारों और दोस्तों से कर्ज लिया। उसका सामना करना मुश्किल था, लेकिन शायद ही अंदर वह अकेलेपन और दबाव से जूझ रही थी। प्रश्न यह है कि हमारी शिक्षा प्रणाली में छात्रों को मानसिक सहारा कैसे मिलता है?

IIT जैसे बड़े संस्थान में भी अगर कोई छात्र अकेलेपन से हार जाए, तो यह सिर्फ उसकी हार नहीं बल्कि पूरे सिस्टम की चूक कही जाएगी।

समाज के लिए सबक

धीरज की मृत्यु केवल एक व्यक्तिगत त्रासदी नहीं है, बल्कि यह समाज के लिए चेतावनी है। हमें यह सुझाव देना होगा कि मानसिक स्वास्थ्य और भावनात्मक समर्थन भी केवल शैक्षिक सफलता से कम नहीं है।

  • हर छात्र को यह एहसास दिलाना होगा कि वह अकेला नहीं है।
  • कॉलेजों को प्रशासन और छात्र सहायता प्रणाली को मानकीकृत करना होगा।
  • परिवार और समाज को भी बच्चों के साथ संवाद करना होगा।

धीरज की मौत—एक सवाल हम सबके लिए

आज धीरज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उसकी कहानी हमें झकझोर जाती है। क्या हम समय रहते उसकी तकलीफ समझ पाते तो आज नतीजा कुछ और होता? धीरज का जाना केवल एक हादसा नहीं, बल्कि हमारी सामूहिक नाकामी का आईना है।

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