सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: सार्वजनिक स्थलों से तत्काल हटाव
देश में बढ़ते आवारा कुत्तों के खतरे पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक कदम उठाया है। तीन जजों की पीठ — जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस एन.वी. अंजारिया — ने स्वयं संज्ञान लेते हुए दिल्ली नगर निगम (MCD) सहित सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को सख्त निर्देश दिए हैं। स्कूल, अस्पताल, रेलवे स्टेशन, बस अड्डे जैसे सार्वजनिक स्थलों से आवारा कुत्तों को तत्काल हटाकर डॉग शेल्टर होम में शिफ्ट किया जाए। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इन्हें दोबारा उसी जगह नहीं छोड़ा जाएगा। पूरी प्रक्रिया अधिकतम 8 हफ्तों में पूरी होनी चाहिए। यह फैसला दिल्ली में रेबीज से मौतों और मीडिया रिपोर्टों पर आधारित है, जहां बच्चों और मरीजों पर हमले बढ़ गए हैं। कोर्ट ने इसे “गंभीर खतरा” माना और त्वरित कार्रवाई पर जोर दिया।
फेंसिंग और नोडल अधिकारी: पुनरावृत्ति रोकने की रणनीति
सुप्रीम कोर्ट ने सिर्फ हटाने तक सीमित नहीं रहकर रोकथाम पर भी फोकस किया। सार्वजनिक स्थलों पर कुत्तों की वापसी रोकने के लिए मजबूत बाड़ (फेंसिंग) लगाई जाए। हर जिले में एक नोडल अधिकारी नियुक्त हो, जो इसकी निगरानी करे। कोर्ट ने कहा कि लापरवाही बर्दाश्त नहीं होगी। यह कदम स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा और अस्पतालों में मरीजों के इलाज को बाधित होने से बचाएगा। पिछले साल देशभर में 70 लाख से ज्यादा कुत्ते काटने की घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें सैकड़ों मौतें रेबीज से हुईं। कोर्ट ने इसे “जन स्वास्थ्य संकट” करार दिया। MCD और अन्य निकायों को बजट आवंटन और संसाधन जुटाने के निर्देश दिए गए हैं।
संयुक्त पेट्रोलिंग और हेल्पलाइन: सड़कों पर भी नियंत्रण
आवारा कुत्तों का खतरा सिर्फ सार्वजनिक स्थलों तक नहीं, सड़कों और राजमार्गों पर भी है। सुप्रीम कोर्ट ने हर राज्य में संयुक्त पेट्रोलिंग टीम गठित करने का आदेश दिया, जिसमें पशु कल्याण विभाग, पुलिस और नगर निकाय शामिल हों। ये टीमें आवारा कुत्तों व मवेशियों को पकड़कर शेल्टर होम भेजेंगी। हाईवे अथॉरिटी को गश्ती दल तैनात करने और 24×7 हेल्पलाइन नंबर जारी करने के निर्देश दिए गए हैं। लोग कॉल करके सूचना दे सकेंगे। कोर्ट ने कहा कि यह व्यवस्था स्थायी होनी चाहिए। पिछले मामलों में पेट्रोलिंग की कमी से समस्या बढ़ी थी। अब यह मॉडल पूरे देश में लागू होगा, जो दुर्घटनाओं और हमलों को कम करेगा।
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मुख्य सचिवों की जवाबदेही: हलफनामा और सख्त अनुपालन
सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों के मुख्य सचिवों को व्यक्तिगत जिम्मेदारी सौंपी है। वे सुनिश्चित करें कि 8 हफ्तों में काम पूरा हो और विस्तृत हलफनामा दाखिल करें। इसमें कार्रवाई, शेल्टर होम की क्षमता, स्टेरलाइजेशन प्रोग्राम और बजट का ब्योरा हो। कोर्ट ने चेतावनी दी कि अनुपालन न करने पर अवमानना कार्रवाई होगी। यह कदम नौकरशाही की सुस्ती पर लगाम कसेगा। पशु अधिकार कार्यकर्ता स्टेरलाइजेशन पर जोर दे रहे हैं, लेकिन कोर्ट ने सुरक्षा को प्राथमिकता दी। शेल्टर होम में कुत्तों का टीकाकरण और देखभाल अनिवार्य होगी। यह आदेश ABC (Animal Birth Control) नियमों को मजबूत करेगा।
जन सुरक्षा की बड़ी जीत: उम्मीद और चुनौतियाँ
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला लाखों लोगों के लिए राहत की खबर है। स्कूलों में बच्चे, अस्पतालों में मरीज और सड़कों पर राहगीर अब सुरक्षित महसूस करेंगे। लेकिन चुनौतियां भी हैं — शेल्टर होम की कमी, फंडिंग और जागरूकता। कोर्ट ने स्थानीय निकायों को NGO के साथ मिलकर काम करने को कहा है। स्टेरलाइजेशन और टीकाकरण लंबे समय में समस्या की जड़ खत्म करेंगे। यह आदेश पशु कल्याण और मानव सुरक्षा के बीच संतुलन बनाता है। अब राज्यों की इच्छाशक्ति पर निर्भर है कि 8 हफ्तों में धरातल पर बदलाव दिखे। देशवासियों को उम्मीद है कि यह फैसला आवारा कुत्तों के आतंक का अंत होगा।

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