कट्टरपंथ का खौफनाक चेहरा एक बार फिर सामने आया, मानवता को शर्मसार करने वाली घटना से दहला बांग्लादेश
बांग्लादेश एक बार फिर अल्पसंख्यकों पर हमलों को लेकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर सवालों के घेरे में है। खुलना जिले से सामने आई एक दर्दनाक घटना में एक हिंदू सामाजिक कार्यकर्ता और नेता को इस्लाम धर्म कबूल न करने के कारण बेरहमी से पीट-पीट कर मार डाला गया। इस घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिसे देखना किसी भी संवेदनशील व्यक्ति के लिए बेहद कठिन है। घटना ने न सिर्फ बांग्लादेश के हिंदू समुदाय में भय पैदा किया है, बल्कि मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय समुदाय को भी हिला कर रख दिया है।
घटना की पृष्ठभूमि: कट्टरपंथ की जकड़न में धर्मनिरपेक्षता
बताया जा रहा है कि पीड़ित नेता बांग्लादेश के एक ग्रामीण इलाके में सामाजिक सुधार के काम में लगे हुए थे। उन्होंने हमेशा सांप्रदायिक सौहार्द और धार्मिक स्वतंत्रता की वकालत की थी। लेकिन यही सोच कुछ लोगों को रास नहीं आई। आरोप है कि जमात-ए-इस्लामी से जुड़े कट्टरपंथियों ने उन्हें पहले धमकाया, फिर इस्लाम अपनाने का दबाव बनाया।
जब पीड़ित ने यह कहकर इंकार कर दिया कि वह अपने पूर्वजों के धर्म में ही विश्वास रखता है और जबरन धर्मांतरण का विरोध करता है, तो उसे अगवा कर लिया गया। अगवा करने के बाद उसे बुरी तरह से पीटा गया, और वीडियो में साफ दिखता है कि उसके साथ कैसे जानवरों जैसा सलूक किया गया।
वीडियो वायरल: डर और गुस्से की लहर
घटना का वीडियो किसी स्थानीय ने रिकॉर्ड कर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया, जिसके बाद यह तेजी से वायरल हो गया। वीडियो में देखा जा सकता है कि पीड़ित को रस्सियों से बांधा गया है, और कई लोग उसे लाठियों और डंडों से पीट रहे हैं। चीखें, रोने की आवाजें और उसके इर्द-गिर्द खड़े लोगों की हंसी — यह सब मिलकर एक खौफनाक दृश्य बना देते हैं।
वीडियो ने बांग्लादेश ही नहीं, बल्कि भारत और दुनिया भर के हिंदू संगठनों को हिला दिया है। गौरक्षा से लेकर धर्मांतरण के मुद्दों पर आवाज उठाने वाले समूहों ने इस घटना की कड़ी निंदा की है।
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यूनुस सरकार पर उठे सवाल
बांग्लादेश में हाल ही में सत्ता में आई शेख हसीना की यूनुस सरकार पहले से ही कट्टरपंथियों को लेकर नरम रुख के आरोप झेल रही है। अब इस घटना के बाद सवाल और तीखे हो गए हैं। हिंदू समुदाय के लोगों का कहना है कि:
“हम अपने ही देश में दूसरे दर्जे के नागरिक बन चुके हैं। हमें पूजा करने की आज़ादी नहीं, बोलने की आज़ादी नहीं और अब तो जीने की आज़ादी भी नहीं बची है।”
विपक्षी दलों और मानवाधिकार संगठनों ने भी सरकार से मांग की है कि घटना की निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को कड़ी सजा दी जाए।
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले कोई नई बात नहीं है। बीते वर्षों में दुर्गा पूजा पंडालों पर हमले, हिंदू घरों में आगजनी, महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार, और मंदिरों को तोड़ा जाना आम घटनाएं बन चुकी हैं। यूनुस सरकार के राज में इन घटनाओं में और भी तेजी आई है।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया: मानवाधिकार संगठनों की चुप्पी?
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इस तरह की घटनाओं पर अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों और पश्चिमी मीडिया की प्रतिक्रिया बेहद धीमी या नगण्य रही है। भारत में भी कुछ राजनीतिक दलों ने इसे ‘बांग्लादेश का आंतरिक मामला’ बताकर इससे दूरी बना ली है।
क्या किसी अन्य धर्म के साथ यह होता तो भी यही चुप्पी रहती? यह सवाल अब सोशल मीडिया और सामाजिक संगठनों के बीच उठने लगा है।
भारत में प्रतिक्रिया: विरोध प्रदर्शन की तैयारी
भारत के उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में हिंदू संगठनों और साधु-संतों ने इसका विरोध करते हुए प्रदर्शन की चेतावनी दी है। विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और हिंदू महासभा जैसे संगठनों ने इस घटना को लेकर बांग्लादेश सरकार से जवाब मांगा है और भारतीय विदेश मंत्रालय से हस्तक्षेप की मांग की है।
कब रुकेगा यह धार्मिक उत्पीड़न?
यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की हत्या नहीं, बल्कि पूरे समुदाय की आत्मा पर हमला है। धर्म की आड़ में हिंसा और जबरन परिवर्तन की कोशिशें मानवता के मूल सिद्धांतों के खिलाफ हैं। बांग्लादेश सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि वह अल्पसंख्यकों को सुरक्षा दे, दोषियों को सजा दे और कट्टरपंथ को सख्ती से कुचले।
आज जरूरत है कि पूरी दुनिया इस मुद्दे पर एकजुट होकर बोले – “अब बहुत हुआ!”
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