November 15, 2025

शारदीय नवरात्रि 2025: माँ शैलपुत्री की आराधना से जीवन में स्थिरता और शक्ति का आगमन!

नवरात्रि का पावन आगमन, शक्ति की साधना का प्रारंभ

जय माता दी! शक्ति, भक्ति और साधना का प्रतीक शारदीय नवरात्रि का पावन पर्व एक बार फिर हमारे जीवन में आशा, ऊर्जा और उत्साह की बौछार लेकर आया है। 22 सितंबर 2025 से शुरू होकर 1 अक्टूबर तक चलने वाले ये नौ दिवस माँ दुर्गा के नौ रूपों की आराधना का अवसर प्रदान करते हैं। आज, पहले दिन हम माँ शैलपुत्री की पूजा करते हैं—जो हिमालय की पुत्री मानी जाती हैं। शांत, गंभीर और अडिग संकल्प की प्रतीक, माँ शैलपुत्री हमें सिखाती हैं कि सच्ची शक्ति बाहर नहीं, हमारे भीतर ही निवास करती है। ‘शैल’ यानी पर्वत और ‘पुत्री’ यानी बेटी—उनका नाम ही स्थिरता, मजबूत नींव और अटल आत्मबल का संदेश देता है। जीवन के तूफानों में डगमगाते कदमों को स्थिर करने वाली यह देवी प्रकृति के साथ जुड़ाव और संयम की प्रेरणा देती हैं। इस नवरात्रि में माँ की कृपा से हम नई शुरुआत करें, जहां हर चुनौती अवसर बने।

माँ शैलपुत्री का स्वरूप: त्रिशूल, कमल और नंदी का प्रतीक

माँ शैलपुत्री का दिव्य स्वरूप अत्यंत मनमोहक है। एक हाथ में त्रिशूल धारण किए, जो अधर्म पर विजय का प्रतीक है, और दूसरे में कमल—शुद्धता और ज्ञान का फूल। उनका वाहन नंदी बैल है, जो धैर्य और बलशाली संकल्प का प्रतीक है। भक्तों का विश्वास है कि उनकी आराधना से जीवन में स्थिरता, स्वास्थ्य और समृद्धि का आगमन होता है। पौराणिक कथा के अनुसार, पिछले जन्म में माँ सती ने भगवान शिव के अपमान को सहन न कर अग्निकुंड में आत्माहुति दे दी थी। लेकिन अगले जन्म में वे पर्वतराज हिमालय की पुत्री के रूप में प्रकट हुईं, और शैलपुत्री कहलाईं। यह कथा हमें सिखाती है कि मृत्यु के बाद भी आत्मा की शक्ति अमर रहती है, और संकल्प की जड़ें कभी नष्ट नहीं होतीं। माँ शैलपुत्री की पूजा न केवल भौतिक स्थिरता देती है, बल्कि आध्यात्मिक बल भी प्रदान करती है, जो आधुनिक जीवन की भागदौड़ में आवश्यक है।

पूजा विधि: घटस्थापना से आरती तक, सरल और प्रभावी रीति

प्रातः काल स्नान कर पवित्र मन से पूजा आरंभ करें। स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा स्थल पर घटस्थापना करें—कलश में शुद्ध जल भरें, आम के पत्ते लगाएं, और ऊपर नारियल स्थापित करें। माँ शैलपुत्री की प्रतिमा या चित्र पर रोली, चंदन, अक्षत (चावल), फूल और जल अर्पित करें। घी का दीपक प्रज्वलित करें, जो माँ को अत्यंत प्रिय है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। फिर बीज मंत्र का जाप करें: ॐ देवी शैलपुत्र्यै नमः। इसके बाद भोग अर्पण करें और माँ की आरती उतारें। पूजा के अंत में प्रसाद वितरण करें। आज के दिन गुलाबी वस्त्र पहनना विशेष फलदायी माना जाता है, क्योंकि गुलाबी रंग प्रेम, करुणा और शांत ऊर्जा का प्रतीक है—जो माँ के स्वरूप से पूर्णतः मेल खाता है। इस विधि का पालन करने से माँ प्रसन्न होती हैं और भक्तों को आंतरिक शांति का वरदान देती हैं।

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भोग और रंग: शुद्ध घी का महत्व, जीवन में समृद्धि का द्वार

माँ शैलपुत्री को शुद्ध देसी घी का भोग अति प्रिय है, जो पोषण और शुद्धता का प्रतीक है। घी से निर्मित हलवा, लड्डू या पूरनपोली अर्पित करें। मान्यता है कि इस भोग से जीवन में स्वास्थ्य, स्थिरता और आर्थिक समृद्धि का आगमन होता है। गुलाबी रंग न केवल वस्त्रों में, बल्कि पूजा सामग्री में भी उपयोगी है—जैसे गुलाबी फूल या रोली। ये तत्व माँ की ऊर्जा को आकर्षित करते हैं, जो भक्तों को मानसिक मजबूती प्रदान करती है। नवरात्रि के पहले दिन यह भोग न केवल शारीरिक बल देता है, बल्कि भावनात्मक संतुलन भी लाता है। पारंपरिक रूप से, व्रत रखने वाले भक्त फलाहार पर ध्यान दें, लेकिन भोग का प्रसाद सभी को वितरित करें—यह सामूहिक ऊर्जा का स्रोत बनता है।

नई शुरुआत का संकल्प, जय माता दी का उद्घोष

हर दिन एक नई देवी, हर दिन एक नई सीख, और हर दिन एक नई शुरुआत—शारदीय नवरात्रि हमें यही संदेश देता है। माँ शैलपुत्री की कृपा से हम अपने जीवन में वही स्थिरता, ऊर्जा और सकारात्मकता लाएं, जो उनके हर रूप से प्रकट होती है। इस पावन अवसर पर संकल्प लें कि हम प्रकृति के संरक्षण, आत्मबल की साधना और भक्ति के मार्ग पर चलें। माँ दुर्गा से प्रार्थना करें कि वे हमारे हृदय में निवास करें और हर बाधा को दूर करें। शुभ नवरात्रि! जय माता दी! आइए, इस उत्सव को परिवार और समाज के साथ मनाएं, जहां भक्ति की लहरें हमें एकजुट करें।

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