टेनिसी के हर्ट्सविले न्यूक्लियर प्लांट का 540 फीट ऊँचा कूलिंग टावर आखिरकार गिरा दिया गया। यह टावर करीब 50 साल से अधूरा पड़ा हुआ था और कभी दुनिया का सबसे बड़ा न्यूक्लियर प्लांट बनने वाला था।
अधूरा सपना
1977 में शुरू हुए इस प्लांट में चार रिएक्टर लगाने की योजना बनाई गई थी। इन रिएक्टरों की क्षमता थी कि वे करीब 4 मिलियन घरों को बिजली प्रदान कर सकते। लेकिन विभिन्न कारणों से यह योजना अधूरी रह गई और प्लांट कभी सक्रिय नहीं हो सका।
विस्फोटक के जरिए टावर गिराया गया
हाल ही में इस टावर को गिराने के लिए 900 पाउंड विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया। टावर महज 10 सेकंड में जमींदोज़ हो गया। इस कदम का उद्देश्य उस ज़मीन को भविष्य के विकास और नए प्रोजेक्ट्स के लिए तैयार करना बताया गया।
ब्रिटेन की समान घटना
दिलचस्प बात यह है कि कुछ दिन पहले ही ब्रिटेन के नॉटिंघमशायर में भी एक कोयला आधारित पावर स्टेशन की आठ विशाल टावरों को एक साथ गिराया गया। इन दोनों घटनाओं ने यह दिखाया कि ऊर्जा उद्योग में पुराने और अधूरे प्रोजेक्ट्स को हटाकर नई जरूरतों के अनुरूप विकास किया जा रहा है।
ऊर्जा इतिहास और बदलती जरूरतें
हर्ट्सविले और नॉटिंघमशायर की घटनाएं ऊर्जा इतिहास और बदलती प्राथमिकताओं की तस्वीर पेश करती हैं। पुराने प्रोजेक्ट्स, जो कभी आधुनिक और शक्तिशाली ऊर्जा उत्पादन के प्रतीक थे, अब नए ऊर्जा मॉडल, पर्यावरणीय सुरक्षा और आधुनिक टेक्नोलॉजी की मांगों के कारण अधूरे या अप्रचलित साबित हो रहे हैं।

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