भारत के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के केंद्रों में से एक, वृंदावन स्थित श्री बांके बिहारी मंदिर, हाल ही में एक महत्वपूर्ण कानूनी विवाद का केंद्र बन गया। मंदिर के प्रबंधन और उसके आसपास के क्षेत्र में प्रस्तावित कॉरिडोर परियोजना को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार और मंदिर के पारंपरिक सेवायतों के बीच मतभेद उभरे हैं। इस विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करते हुए राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल उठाए हैं।
पृष्ठभूमि:
मंदिर के चारों ओर प्रस्तावित कॉरिडोर परियोजना का उद्देश्य श्रद्धालुओं की बढ़ती भीड़ को व्यवस्थित करना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। हालांकि, इस परियोजना के लिए मंदिर के फंड का उपयोग किया गया है, जो पारंपरिक सेवायतों द्वारा संचालित होता है। सेवायतों का कहना है कि बिना उनकी सहमति के फंड का उपयोग और सरकारी हस्तक्षेप उनके अधिकारों का उल्लंघन है।
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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार को निजी विवादों में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह के हस्तक्षेप से कानून के शासन को खतरा हो सकता है और यह न्यायिक प्रक्रिया में अनावश्यक दखलअंदाजी है।
राज्य सरकार की प्रतिक्रिया:
उत्तर प्रदेश सरकार ने इस विवाद को सुलझाने के लिए श्री बांके बिहारी जी मंदिर न्यास का गठन किया है, जिसमें 18 सदस्य शामिल हैं। इस ट्रस्ट का उद्देश्य मंदिर के प्रबंधन को सुव्यवस्थित करना और पारंपरिक सेवायतों के अधिकारों की रक्षा करना है। हालांकि, कुछ सेवायत इस ट्रस्ट के गठन और इसके संचालन पर आपत्ति जता रहे हैं।

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