भारत और बांग्लादेश के बीच रिश्तों में आई तल्ख़ी अब आर्थिक और रणनीतिक परियोजनाओं पर असर डालने लगी है। ताजा जानकारी के अनुसार भारत ने बांग्लादेश में चल रही महत्वपूर्ण रेलवे परियोजनाओं पर फिलहाल विराम लगाने का फैसला लिया है। यह फैसला ऐसे समय आया है जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस द्वारा उत्तर-पूर्व भारत पर विवादास्पद टिप्पणी की गई और चीन को क्षेत्र में ‘विकास साझेदार’ के तौर पर आमंत्रित किया गया।
इस कूटनीतिक खिंचाव के बीच, भारत ने न केवल अपनी रेलवे परियोजनाओं की समीक्षा शुरू कर दी है, बल्कि रणनीतिक रूप से वैकल्पिक मार्ग तलाशने पर भी गंभीरता से विचार कर रहा है।
रेलवे सहयोग पर विराम:
भारत और बांग्लादेश के बीच वर्षों से चले आ रहे रेलवे सहयोग कार्यक्रम, खासकर उत्तर-पूर्व भारत को बांग्लादेश के ज़रिए जोड़ने वाले मार्ग, अब अनिश्चितता के दौर में पहुंच गए हैं।
दो सबसे प्रमुख परियोजनाएं जो इस फैसले से प्रभावित हो सकती हैं:
- अखौरा-अगरतला रेल लिंक: यह परियोजना भारत के त्रिपुरा को बांग्लादेश के अखौरा से जोड़ती है। इसका उद्देश्य उत्तर-पूर्व राज्यों के लिए वैकल्पिक कनेक्टिविटी प्रदान करना था।
- खुलना-मोंगला रेल लिंक: यह रेल मार्ग बांग्लादेश के मोंगला पोर्ट को भारत से जोड़ता है, जिससे भारत को व्यापारिक लाभ मिल सकता था।
इन परियोजनाओं पर भारत सरकार ने फंडिंग रोकने और तकनीकी सहयोग स्थगित करने के संकेत दिए हैं। सूत्रों के अनुसार, “जब तक रणनीतिक स्पष्टता और भरोसे का माहौल नहीं बनता, सहयोग पर रोक जरूरी है।”
बांग्लादेश का झुकाव चीन और पाकिस्तान की ओर
तनाव की शुरुआत तब हुई जब बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने उत्तर-पूर्व भारत को लेकर आपत्तिजनक बयान दिया और साथ ही चीन को आमंत्रित किया कि वह इस क्षेत्र में अपनी पहुंच बढ़ाए।
यह बयान न केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता पर सवाल था, बल्कि इसके पीछे पाकिस्तान की रणनीतिक भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
बांग्लादेश ने इसके बाद भारत से कपास और यार्न के आयात पर अस्थायी रोक लगा दी, जिससे उत्तर भारत के कपड़ा उद्योग पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
भारत की कड़ी प्रतिक्रिया
भारत सरकार ने बांग्लादेश को कड़ा संदेश देते हुए ट्रांसशिपमेंट अधिकार (Transshipment Rights) को वापस ले लिया है, जिससे बांग्लादेश को भारत के बंदरगाहों से सामान लाने-ले जाने में मुश्किलें होंगी।
इसके साथ ही भारत अब बांग्लादेश को बायपास करते हुए अन्य वैकल्पिक मार्गों जैसे म्यांमार और त्रिपक्षीय सहयोग (भारत-नेपाल-भूटान) के विकल्पों पर विचार कर रहा है।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, “रिश्ते आपसी सम्मान और भरोसे पर टिके होते हैं। जब कोई पड़ोसी देश हमारी सीमाओं और रणनीतिक हितों पर सवाल उठाता है, तो सहयोग की नींव कमजोर हो जाती है।”
उत्तर भारत पर संभावित असर
उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में स्थित कपड़ा उद्योग, जो बांग्लादेश को यार्न और कपास भेजता था, अब निर्यात में गिरावट का सामना कर सकता है। कई लघु उद्योगों पर इसका सीधा असर पड़ सकता है।
इसके अलावा, उत्तर भारत की व्यापारिक लॉबी अब सरकार से मांग कर रही है कि बांग्लादेश पर आर्थिक दबाव बढ़ाने के लिए सीमा शुल्क और टैक्स में बदलाव किए जाएं।
विशेषज्ञों की राय
रणनीतिक मामलों के जानकार मानते हैं कि भारत को अब अपनी ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ की समीक्षा करने की जरूरत है। प्रो. अजय शुक्ला कहते हैं,
“बांग्लादेश की तरफ से हो रही कूटनीतिक शरारतें भारत की सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती हैं। हमें अपने पूर्वी सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा को प्राथमिकता पर रखना होगा।”
आगे की राह: विकल्प और रणनीति
भारत सरकार अब तेजी से वैकल्पिक कनेक्टिविटी पर काम कर रही है, जिसमें शामिल हैं:
- म्यांमार के जरिए भारत-आसियान कनेक्टिविटी
- शिलांग-गुवाहाटी-इंफाल होकर इंफ्रास्ट्रक्चर मजबूत करना
- बंगाल और असम से सीधे पूर्वोत्तर राज्यों को जोड़ने वाली नई सड़क परियोजनाएं
इसके साथ ही भारत अब मोंगला और चिटगांव बंदरगाहों पर निर्भरता कम करने की रणनीति पर भी विचार कर रहा है।
भारत और बांग्लादेश के बीच रेलवे परियोजनाएं सिर्फ आर्थिक लाभ नहीं, बल्कि रणनीतिक और भौगोलिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण थीं। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों में भारत का यह फैसला राष्ट्रहित और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता देने वाला कदम माना जा रहा है।
भारत अब यह स्पष्ट कर चुका है कि आत्मसम्मान, अखंडता और सुरक्षा के साथ कोई समझौता नहीं किया जाएगा, चाहे वह किसी भी पड़ोसी देश के साथ संबंध हों।
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