वॉशिंगटन में पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर का वॉइट हाउस में भव्य स्वागत भारत के लिए एक कूटनीतिक संकेत बनकर उभरा है। वर्षों तक अमेरिका से मिली फटकार के बाद पाकिस्तान के साथ संबंधों में आई यह गर्मजोशी कई सवाल खड़े कर रही है, खासकर तब जब भारत लंबे समय से अमेरिका के रणनीतिक साझेदार की भूमिका में रहा है।
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा असीम मुनीर के साथ निजी भोज और सार्वजनिक तारीफ ने इस मुलाकात को और भी खास बना दिया। ट्रंप ने मुनीर को भारत-पाक युद्ध रोकने में “प्रभावशाली व्यक्ति” बताया और पाकिस्तान के लिए अपने प्रेम का इज़हार किया। इसके उलट, उन्होंने भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सराहना भी की लेकिन साथ ही खुद को मध्यस्थता में अहम बताने से नहीं चूके।
भारत की सीधी प्रतिक्रिया
भारत ने इस घटनाक्रम को हल्के में नहीं लिया। प्रधानमंत्री मोदी और ट्रंप की फोन कॉल में भारत ने साफ किया कि पाकिस्तान के युद्धविराम अनुरोध के बाद ही तनाव कम हुआ था, किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता नहीं हुई। विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट कहा, “भारत ने अतीत में कभी मध्यस्थता स्वीकार नहीं की है और न भविष्य में करेगा।”
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क्या यह सिर्फ चापलूसी थी?
पाक सेना प्रमुख की वॉइट हाउस में आमद को लेकर एक और दिलचस्प बात सामने आई — उन्होंने कथित तौर पर ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामित किया था। विश्लेषकों का मानना है कि मुनीर ने ट्रंप की चापलूसी कर इस मुलाकात की नींव रखी। दक्षिण एशिया मामलों के विश्लेषक माइकल कुगेलमैन ने कहा, “पाक जनरलों की अमेरिकी अधिकारियों से मुलाकात आम बात है, लेकिन वॉइट हाउस में स्वागत असाधारण है।”
भारत की चिंता क्यों वाजिब?
भारत के लिए असली चिंता का विषय यह है कि जिस सैन्य प्रतिष्ठान पर सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देने का आरोप है, अब अमेरिका उसके साथ खुला संबंध बना रहा है। पाकिस्तान को अब तक आतंकवाद का गढ़ माना जाता रहा है। ट्रंप और बाइडन दोनों ही पहले पाक की आलोचना कर चुके हैं। ऐसे में इस नई नज़दीकी को सिर्फ रणनीतिक सहयोग मानना कठिन है।
विश्लेषकों का कहना है कि ट्रंप ताकतवर नेतृत्व को पसंद करते हैं और असीम मुनीर उस छवि को प्रकट करते हैं। ट्रंप जानते हैं कि पाकिस्तान में असली सत्ता सेना के पास है।
अमेरिका की रणनीति या पाकिस्तान की मजबूरी?
कुछ रिपोर्टों में यह भी दावा किया गया है कि अमेरिका पाकिस्तान के सैन्य ठिकानों तक पहुंच चाहता है, खासकर ईरान-इजरायल युद्ध की स्थिति में। लेकिन पाकिस्तान की जनता और सेना, दोनों ईरान को लेकर सहानुभूति रखते हैं, और किसी संघर्ष में शामिल होना उनके लिए राजनीतिक रूप से नुकसानदेह हो सकता है।
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