लखनऊ: समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक बार फिर जातिगत जनगणना (Caste Census) की पुरजोर वकालत की है। उन्होंने केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा सरकार सामाजिक न्याय से भाग रही है और पिछड़े, दलित व वंचित वर्गों को उनके हक से वंचित रखा जा रहा है।
“सच सामने लाने से क्यों डर रही है भाजपा?”
अखिलेश यादव ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, “जातिगत जनगणना कराकर ही समाज के सभी वर्गों को उनका हक और सम्मान मिल सकता है। भाजपा सरकार जानती है कि अगर सच्चाई सामने आ गई तो उसकी राजनीति की नींव हिल जाएगी।”
उन्होंने कहा कि जब आर्थिक जनगणना हो सकती है, जब धर्म के आधार पर आंकड़े जुटाए जा सकते हैं, तो जाति के आधार पर क्यों नहीं? “जातीय आंकड़े सामने आने से सरकार को यह तय करने में मदद मिलेगी कि किस वर्ग को कितनी हिस्सेदारी मिलनी चाहिए,” अखिलेश ने कहा।
2024 के चुनावों में बना अहम मुद्दा
अखिलेश यादव और विपक्षी गठबंधन I.N.D.I.A ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि जातिगत जनगणना 2024 के आम चुनावों में एक बड़ा चुनावी मुद्दा होगा। उनका दावा है कि भाजपा सिर्फ नारेबाज़ी करती है, लेकिन असल में सामाजिक न्याय की राह में रोड़ा अटका रही है।
उन्होंने यह भी कहा कि “अगर हमारी सरकार बनती है, तो हम सबसे पहले जातिगत जनगणना कराएंगे और सभी वर्गों को आबादी के अनुपात में भागीदारी देंगे।”
सपा की रणनीति: मंडल बनाम मंदिर
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अखिलेश यादव मंडल की राजनीति को फिर से केंद्र में लाने की कोशिश कर रहे हैं। मंदिर और राष्ट्रवाद के एजेंडे के सामने सामाजिक न्याय का मुद्दा खड़ा कर सपा भाजपा को घेरना चाहती है।
“राम मंदिर के नाम पर भाजपा लोगों की आंखों में धूल झोंक रही है। लेकिन हम उन्हें याद दिलाना चाहते हैं कि संविधान में सभी को समान अधिकार दिया गया है,” अखिलेश यादव ने कहा।
यह भी पढ़े: सीमा हैदर मुश्किल में, भारत-पाक तनाव के बीच वीजा रद्द, एटीएस जांच में गहन पूछताछ
जातीय आंकड़ों की मांग क्यों जरूरी है?
समाजवादी पार्टी का तर्क है कि जब तक जातीय आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते, तब तक पिछड़े, दलित और आदिवासी वर्गों को सही मायनों में हक नहीं मिल सकता। वर्तमान में OBC आरक्षण की सीमा 27% है, लेकिन यह बिना किसी ठोस आंकड़े के तय किया गया है। अखिलेश यादव कहते हैं कि यह सरासर अन्याय है।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि केंद्र सरकार 2011 में हुई सामाजिक आर्थिक जातिगत जनगणना (SECC) के आंकड़े सार्वजनिक नहीं कर रही है, क्योंकि उसे डर है कि सच्चाई सामने आ गई तो उसके “सबका साथ, सबका विकास” के दावे झूठे साबित हो जाएंगे।
भाजपा की प्रतिक्रिया
भाजपा ने अखिलेश यादव के बयानों को चुनावी स्टंट बताया है। भाजपा प्रवक्ताओं का कहना है कि विपक्ष केवल समाज को बांटने की राजनीति कर रहा है। भाजपा नेता दावा करते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की योजनाएं जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी तक पहुंच रही हैं।
लेकिन विपक्ष का तर्क है कि अगर भाजपा को वाकई सभी वर्गों की चिंता है, तो वह जातिगत जनगणना से क्यों डर रही है?
अखिलेश यादव का यह बयान ऐसे समय में आया है जब देशभर में जातिगत जनगणना को लेकर बहस तेज हो चुकी है। बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने पहले ही राज्य स्तरीय जातीय सर्वेक्षण कराया है और उसके आंकड़े भी जारी किए जा चुके हैं। अब उत्तर भारत की राजनीति में यह मुद्दा नए सिरे से गरमाता दिख रहा है।
यह साफ है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में जातिगत जनगणना सिर्फ एक आंकड़ों का विषय नहीं रहेगा, बल्कि यह सामाजिक न्याय, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और सत्ता में हिस्सेदारी का बड़ा मुद्दा बनकर उभरेगा।
संबंधित पोस्ट
ऑपरेशन सिंदूर: राजनाथ सिंह का आतंकवाद पर कड़ा संदेश
कांग्रेस को खुलासा नहीं पीएम मोदी से इस्तीफा मांगना चाहिए – संजय राउत
कांग्रेस महिला मोर्चा ने विजय शाह को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की उठाई मांग भोपाल में प्रदर्शन