जब फसल ही बोझ बन जाए, तो किसान क्या करे । पटमदा के किसानों के लिए इस साल टमाटर की बंपर पैदावार किसी उत्सव का नहीं, बल्कि निराशा और नुकसान का सबब बन गई है। आलम यह है कि किसानों को सही कीमत न मिलने की वजह से लाखों रुपए की टमाटर की फसल खेतों में ही फेंकनी पड़ रही है।पटमदा क्षेत्र जो कि जमशेदपुर के पास सब्जी की खेती के लिए प्रसिद्ध है। इस बार टमाटर की भरपूर फसल से लहलहा उठा था। शुरुआत में बाजार में दाम अच्छे मिले लेकिन जैसे ही बाजार में टमाटर की अधिकता हुई, कीमतें गिरकर 2 रुपये प्रति किलो तक आ गईं।
किसानों की मजबूरी जब लागत नहीं निकलती तो फसल फेंकनी पड़ती है
अब तक करीब 20 किसान अपने खेतों से ट्रैक्टर में भरकर टमाटर सीधे खेतों में ही फेंक चुके हैं। कुछ किसानों ने बताया कि उन्होंने अपने 10 बीघे से ज़्यादा ज़मीन में उगाई टमाटर की पूरी फसल नष्ट कर दी। ये नुकसान लाखों रुपये में बैठता है।
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कोल्ड स्टोरेज की कमी ने बढ़ाई परेशानी
किसानों की सबसे बड़ी समस्या यह रही कि इलाके में एक भी कोल्ड स्टोरेज नहीं है। उन्होंने टमाटर तोड़कर घरों में स्टोर करना चाहा, लेकिन जल्दी खराब होने वाले इस उत्पाद को ज़्यादा दिन संभाल पाना मुमकिन नहीं था। प्रोसेसिंग यूनिट्स और कंपनियों ने भी किया इनकार किसानों को यह उम्मीद थी कि सॉस और केचप बनाने वाली कंपनियां कम से कम उनकी फसल खरीद लेंगी। लेकिन इन कंपनियों ने भी हाथ पीछे खींच लिए। ऐसे में किसानों के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा।
किसान नहीं, बाजार फेल हुआ है
इस घटनाक्रम ने एक बार फिर से सवाल खड़े कर दिए हैं —क्या भारत का कृषि तंत्र बिचौलियों और असंगठित बाजारों के भरोसे ही चलता रहेगा?क्या फसल का सही मूल्य सुनिश्चित करना सिर्फ नीतियों तक सीमित रहेगा? क्या गांवों और कस्बों में कोल्ड स्टोरेज और प्रोसेसिंग यूनिट्स की कमी यूं ही बनी रहेगी?
कृषि को अगर वाकई आत्मनिर्भर बनाना है। तो सिर्फ पैदावार बढ़ाना काफी नहीं। ज़रूरत है बाज़ार सुधारने की, कोल्ड चेन तैयार करने की और किसानों को तकनीक, प्रोसेसिंग और स्टोरेज की सुविधाएं देने की। वरना हर साल किसी न किसी को अपनी ही मेहनत खेतों में बर्बाद करनी पड़ेगी।
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