पहलगाम आतंकी हमले पर फारूक अब्दुल्ला का बड़ा बयान: सुरक्षा चूक और मुसलमानों के खिलाफ बढ़ते खतरे पर चिंता

जम्मू-कश्मीर में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को हैरान कर दिया। इस हमले के बाद, जम्मू-कश्मीर नेशनल कॉन्फ्रेंस (JKNC) के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने फिर से इस घटना पर अपनी गहरी चिंता और प्रतिक्रिया व्यक्त की है। फारूक अब्दुल्ला ने इस हमले को एक “सुरक्षा चूक” और “खुफिया चूक” करार दिया, और साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यह घटना न केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए बल्कि भारतीय मुसलमानों के लिए भी खतरनाक संदेश दे रही है।

फारूक अब्दुल्ला का बयान

फारूक अब्दुल्ला ने कहा, “पहलगाम की घटना बहुत दर्दनाक है। मेरा मानना ​​है कि जो भी इंसानियत को जानता है, वह इस बात से सहमत होगा कि ऐसा नहीं होना चाहिए। सबसे ज्यादा नुकसान जम्मू-कश्मीर के लोगों को हो रहा है।” उन्होंने कहा कि यह एक ऐसा हमला है, जो इंसानियत के खिलाफ है, और इसका असर सिर्फ सुरक्षा के लिहाज से नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी गंभीर है।

उन्होंने इस घटना को “सुरक्षा चूक” और “खुफिया चूक” के रूप में बताया। उनका कहना था कि इस तरह के हमले को रोकने में नाकामयाबी का मतलब है कि सुरक्षा तंत्र में बड़ी गड़बड़ी है। फारूक अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि आतंकवादियों ने यह हमला इसलिए किया क्योंकि उन्हें यह नहीं पसंद आया कि जम्मू-कश्मीर के लोग अच्छे काम कर रहे हैं और उन्होंने इसे तोड़ने के लिए यह हिंसा की।

फारूक अब्दुल्ला की चिंता: मुसलमानों पर बढ़ता खतरा

फारूक अब्दुल्ला ने इस हमले को सिर्फ एक सुरक्षा समस्या नहीं, बल्कि मुसलमानों के खिलाफ बढ़ते खतरों के रूप में भी देखा। उनका कहना था, “यह सिर्फ इंसानियत पर हमला नहीं है, बल्कि मुसलमानों पर इसका क्या असर होगा?” उन्होंने इस बात पर भी चिंता जताई कि पहले से ही एक नैरेटिव चल रहा है कि मुसलमानों को खत्म कर दिया जाए, और यह खासकर उन राज्यों में हो रहा है, जहां भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता में है।

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फारूक अब्दुल्ला के अनुसार, यह एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक संकट है, क्योंकि इससे न केवल जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों के जीवन पर असर पड़ेगा, बल्कि पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा को बढ़ावा मिलेगा। उनका यह भी कहना था कि “हम इस नैरेटिव का मुकाबला कर रहे थे, लेकिन यह घटना इस स्थिति को और बिगाड़ सकती है।”यह भी पढ़े:फारूक अब्दुल्ला के अनुसार, यह एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक संकट है, क्योंकि इससे न केवल जम्मू-कश्मीर में मुसलमानों के जीवन पर असर पड़ेगा, बल्कि पूरे देश में मुसलमानों के खिलाफ नफरत और हिंसा को बढ़ावा मिलेगा। उनका यह भी कहना था कि “हम इस नैरेटिव का मुकाबला कर रहे थे, लेकिन यह घटना इस स्थिति को और बिगाड़ सकती है।”

सुरक्षा चूक और खुफिया खामियां

फारूक अब्दुल्ला का यह बयान सुरक्षा और खुफिया तंत्र में गंभीर खामियों को उजागर करता है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद से यह सवाल उठने लगा है कि क्या जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा बलों के पास पर्याप्त जानकारी और तैयारी थी। अब्दुल्ला के अनुसार, यह हमला सुरक्षा बलों की नाकामी को दर्शाता है, और इस पर गंभीर जांच की आवश्यकता है।

इससे पहले भी जम्मू-कश्मीर में आतंकी हमले होते रहे हैं, लेकिन पहलगाम जैसी शांतिपूर्ण और पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध जगह पर ऐसा हमला करना सुरक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाता है। फारूक अब्दुल्ला ने यह भी कहा कि यह हमला किसी बाहरी ताकत से नहीं, बल्कि उस प्रोपेगैंडा को तोड़ने के लिए किया गया था जो यह दिखाता है कि जम्मू-कश्मीर में स्थितियां सुधर रही हैं और लोग अच्छा कर रहे हैं।

जम्मू-कश्मीर के लिए बड़े खतरे

फारूक अब्दुल्ला ने इस हमले को जम्मू-कश्मीर के लिए एक और बड़े खतरे के रूप में देखा। उनका कहना था कि इस तरह के हमले न केवल सुरक्षा के लिहाज से गंभीर हैं, बल्कि यह जम्मू-कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने को भी प्रभावित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इस घटना से जम्मू-कश्मीर के लोग डर सकते हैं और आतंकवादियों की गतिविधियों को लेकर असुरक्षा महसूस कर सकते हैं।

फारूक अब्दुल्ला का यह बयान जम्मू-कश्मीर में हो रहे राजनीतिक और सामाजिक बदलावों के संदर्भ में भी महत्वपूर्ण है। जहां एक ओर जम्मू-कश्मीर में कई सकारात्मक बदलाव हो रहे हैं, वहीं दूसरी ओर इस तरह के हमले राज्य में स्थिति को और जटिल बना रहे हैं। फारूक अब्दुल्ला का कहना था कि आतंकवादियों का उद्देश्य जम्मू-कश्मीर में असुरक्षा का माहौल पैदा करना और राज्य की शांति को बिगाड़ना है।

पहलगाम आतंकी हमले पर फारूक अब्दुल्ला का बयान साफ तौर पर इस घटना की गंभीरता को दर्शाता है। उन्होंने न केवल इस घटना को सुरक्षा चूक और खुफिया चूक करार दिया, बल्कि इसके सामाजिक और धार्मिक असर को भी उजागर किया। उनका कहना था कि यह हमला केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए नहीं, बल्कि भारतीय मुसलमानों के लिए भी एक बड़ा खतरा है।

अब यह सवाल उठता है कि क्या जम्मू-कश्मीर में बढ़ते आतंकवाद और असुरक्षा को रोकने के लिए सुरक्षा तंत्र को फिर से पुनर्निर्मित करने की आवश्यकता है? और क्या भारतीय समाज को इन हमलों के बावजूद एकजुट रहकर धर्म और समाज के बीच विभाजन को खत्म करने की दिशा में कदम उठाने चाहिए? इन सवालों के उत्तर आने वाले दिनों में स्पष्ट होंगे।

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