मणिपुर एक बार फिर हिंसा और तनाव की गिरफ्त में है। बीते दो वर्षों से इस पूर्वोत्तर राज्य में जातीय संघर्ष, हत्याएं, पलायन और बलात्कार की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। हालात इतने गंभीर हो चुके हैं कि अब तक सैकड़ों लोगों की जान जा चुकी है और हज़ारों परिवार बेघर हो चुके हैं। ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर कांग्रेस सांसद प्रियंका गांधी ने रविवार (8 जून) को केंद्र सरकार की चुप्पी और निष्क्रियता पर तीखा हमला किया।
विरोध प्रदर्शन के बाद इंटरनेट बंद, कर्फ्यू लागू
शनिवार को मणिपुर की राजधानी इंफाल के कई हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए, जिन पर नियंत्रण पाने के लिए प्रशासन ने सख्त कदम उठाए। पांच जिलों में इंटरनेट सेवाएं पांच दिन के लिए बंद कर दी गई हैं। इसके अलावा, चार जिलों में धारा 144 लागू कर दी गई है ताकि लोगों के सार्वजनिक स्थानों पर इकट्ठा होने पर रोक लगाई जा सके। एक जिले में कर्फ्यू भी लगा दिया गया है।
प्रियंका गांधी का केंद्र सरकार पर सीधा सवाल
प्रियंका गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर लिखा:
“मणिपुर एक बार फिर से हिंसा की चपेट में है। करीब दो साल से राज्य के लोग हिंसा, हत्या, बलात्कार और पलायन झेल रहे हैं। सैकड़ों मौतें हो चुकी हैं, हजारों लोग बेघर हैं। आखिर क्या कारण है कि केंद्र का शासन होने के बावजूद वहाँ शांति बहाली नहीं हो पा रही है?”
प्रियंका ने केंद्र सरकार पर सीधा आरोप लगाया कि मणिपुर में शांति बहाली के लिए कोई ठोस और प्रभावी प्रयास नहीं किए जा रहे। उन्होंने कहा कि केंद्र की निष्क्रियता चिंताजनक है और इससे लोकतंत्र में आमजन का विश्वास डगमगाता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी उठाए सवाल
प्रियंका गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौन नीति पर भी सवाल खड़े किए। उन्होंने लिखा:
“प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मणिपुर को उसके हाल पर क्यों छोड़ दिया है? न उन्होंने मणिपुर का दौरा किया, न किसी प्रतिनिधि से मिले, न शांति की अपील की और न ही कोई ठोस पहल की। यह संवेदनहीनता लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।”
यह बयान केंद्र सरकार की जवाबदेही को कटघरे में खड़ा करता है, खासकर जब राज्य सीधे केंद्र शासन के अधीन है।
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मणिपुर में शांति की राह चुनौतीपूर्ण
मणिपुर में जारी संकट को देखते हुए यह स्पष्ट हो जाता है कि इंटरनेट बंद करना या कर्फ्यू लगाना केवल अस्थायी समाधान हैं। स्थायी शांति के लिए सभी पक्षों से संवाद आवश्यक है। जनजातीय समूहों, स्थानीय संगठनों और प्रशासन के बीच विश्वास बहाल करना अब समय की मांग है।
विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक सरकार सामाजिक समरसता, न्याय और विकास पर आधारित नीतियाँ लागू नहीं करती, तब तक मणिपुर को स्थायी राहत नहीं मिल पाएगी।
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