जातिगत जनगणना को लेकर देश की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा आगामी जनसंख्या जनगणना के साथ जातिगत सर्वे जोड़ने के ऐलान पर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने आज बड़ा बयान दिया। उन्होंने इस कदम को “दबाव में लिया गया, लेकिन स्वागत योग्य” बताते हुए केंद्र को इसकी रूपरेखा तैयार करने में मदद का प्रस्ताव दिया है।
“यह कदम सही दिशा में, लेकिन देर से”: राहुल गांधी
राहुल गांधी ने अपने बयान में कहा कि जातिगत जनगणना की मांग कांग्रेस पार्टी और INDIA गठबंधन लंबे समय से उठाते आ रहे हैं। यह मांग अब जाकर केंद्र ने स्वीकार की है, लेकिन यह जनता के दबाव और विपक्ष की आवाज़ के चलते हुआ, न कि सरकार की मंशा से।
उन्होंने यह भी कहा कि यदि सरकार ईमानदारी से इसे लागू करना चाहती है तो कांग्रेस इसके डिजाइन और योजना में तकनीकी, राजनीतिक और सामाजिक मदद देने को तैयार है।
तेलंगाना बनाम बिहार: किसकी जातिगत गणना बेहतर?
राहुल गांधी ने अपने बयान में तेलंगाना सरकार की जातिगत गणना की तारीफ की और कहा कि वह बिहार के मुकाबले अधिक वैज्ञानिक और सटीक थी। हालांकि उन्होंने यह भी जोड़ा कि बिहार की पहल पहली थी और ऐतिहासिक रूप से अहम रही।
यह टिप्पणी सीधे तौर पर कांग्रेस द्वारा शासित राज्यों की कार्यक्षमता और सामाजिक न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दिखाने की कोशिश मानी जा रही है।
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कांग्रेस का रोडमैप: सामाजिक न्याय की दिशा में तीन अगली मांगें
राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना को सिर्फ शुरुआत बताते हुए कहा कि सामाजिक न्याय के लिए और भी कई ठोस कदम उठाने की जरूरत है। उन्होंने कांग्रेस पार्टी की ओर से आने वाले समय में तीन प्रमुख मांगों को आगे बढ़ाने की बात कही:
- OBC की सही भागीदारी: सरकारी नौकरियों और योजनाओं में OBC समुदाय को उसकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व मिले। इसके लिए केंद्र को नीतिगत बदलाव करने होंगे।
- डाटा सार्वजनिक करना: जातिगत जनगणना का डाटा खुलकर सामने लाया जाए, जिससे नीति निर्माण पारदर्शी हो और योजना बनाते समय वास्तविक सामाजिक असमानताओं का समाधान हो सके।
- कानूनी गारंटी और कोटा की समीक्षा: वर्तमान आरक्षण प्रणाली की समीक्षा की जाए और उसमें नई जातियों को जोड़ने या कोटा में संशोधन करने की प्रक्रिया को तेज किया जाए।
राजनीतिक मायने: दबाव में सरकार या नई दिशा?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राहुल गांधी का यह बयान दोतरफा संदेश देता है — एक ओर वे केंद्र सरकार पर नैतिक और राजनीतिक दबाव बनाए रख रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सामाजिक न्याय की लड़ाई में कांग्रेस की भूमिका को नेतृत्वकारी दिखा रहे हैं।
यह बयान आने वाले बिहार और अन्य राज्यों के चुनावों में कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा हो सकता है, जहां OBC और हाशिए के वर्गों का बड़ा वोटबैंक है।
जातिगत जनगणना: अब सभी की सहमति?
जहां पहले जातिगत जनगणना को लेकर भाजपा और कांग्रेस के बीच टकराव दिखता था, अब ऐसा लग रहा है कि यह मुद्दा राष्ट्रीय सहमति की ओर बढ़ रहा है। केंद्र की घोषणा और विपक्ष की प्रतिक्रिया से यह साफ है कि आने वाले वर्षों में यह मुद्दा नीतिगत और राजनीतिक रूप से केंद्र में रहेगा।
राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना के मुद्दे को सिर्फ स्वागत करके नहीं छोड़ा, बल्कि इसके क्रियान्वयन और भविष्य की दिशा को लेकर स्पष्ट दृष्टिकोण भी पेश किया है। यह बयान उनके सामाजिक न्याय के एजेंडे का विस्तार है और यह कांग्रेस को इस मुद्दे पर आगे रखने का प्रयास भी।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या केंद्र सरकार इस सहयोग के प्रस्ताव को स्वीकार करती है या इसे सिर्फ राजनीतिक बयानबाज़ी मानकर टाल देती है।

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