वाशिंगटन : भारतीय मूल की अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स ने हाल ही में अपने अंतरिक्ष मिशन से लौटने के बाद भारत को लेकर अपने विचार साझा किए। उन्होंने कहा कि अंतरिक्ष से भारत देखने का अनुभव बेहद अद्भुत था।
हिमालय की अविश्वसनीय तस्वीरें
मीडिया से बातचीत के दौरान जब उनसे भारत के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, “भारत अद्भुत है। जब भी हमारा स्पेसक्राफ्ट हिमालय के ऊपर से गुजरा, बुच (विल्मोर) ने हिमालय की कुछ अविश्वसनीय तस्वीरें लीं। यह नजारा बेहद शानदार था।सुनीता विलियम्स और बुच विल्मोर हाल ही में स्पेसएक्स क्रू-9 मिशन के तहत पृथ्वी पर लौटे हैं। दोनों नौ महीनों तक अंतरिक्ष में रहे और बीते सोमवार को उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर अपने अनुभव साझा किए।
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में सहयोग की इच्छा
जब उनसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साथ संभावित सहयोग के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, “एक्सिओम मिशन पर जा रहे भारतीय नागरिक शानदार हैं। उनका हिस्सा बनना हमें पसंद आएगा।” उन्होंने आगे कहा कि वे भारत में अधिक से अधिक लोगों के साथ अपने अनुभव साझा करना चाहेंगी।
भारत को लेकर विशेष भावनाएं
सुनीता विलियम्स ने भारत के लोकतंत्र की भी सराहना की और कहा कि भारत अंतरिक्ष क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ रहा है। “भारत एक महान देश है। यहां का लोकतंत्र अद्भुत है। भारत अंतरिक्ष में अपने पैर जमाने में लगा है, और हम इसका हिस्सा बनना और उनकी मदद करना पसंद करेंगे।”
क्या भारत आएंगी सुनीता विलियम्स?
भारत आने के सवाल पर सुनीता ने कहा, “मुझे पूरी आशा और यकीन है कि मैं अपने पिता के देश भारत जरूर जाऊंगी और लोगों से मिलूंगी।” उन्होंने कहा कि जब वे भारत आएंगी, तो वहां के लोगों के साथ अंतरिक्ष के अपने अनुभव साझा करेंगी।
अंतरिक्ष विज्ञान में भारत की प्रगति
पिछले कुछ वर्षों में भारत ने चंद्रयान-3 और गगनयान जैसे मिशनों के जरिए अंतरिक्ष क्षेत्र में बड़ी प्रगति की है। इसरो और नासा के बीच बढ़ते सहयोग को देखते हुए यह संभावना है कि भविष्य में सुनीता विलियम्स जैसी अनुभवी अंतरिक्ष यात्री भारत के स्पेस फ्लाइट प्रोग्राम में अहम भूमिका निभा सकती हैं।
सुनीता विलियम्स का भारत और यहां के अंतरिक्ष कार्यक्रम को लेकर उत्साह भारतीयों के लिए गर्व की बात है। उनकी यह इच्छा कि वे भारत के लोगों के साथ अपने अनुभव साझा करें, भारत के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कब वे भारत आती हैं और यहां के वैज्ञानिकों व छात्रों के साथ अपने अनुभव साझा करती हैं।
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