क्या आपने कभी सोचा है कि कोई 25 साल की युवा लड़की, जो अभी-अभी कॉलेज से निकली हो और अपने संगीत के दम पर लाखों दिलों को जीत चुकी हो, राजनीति में कदम रखे? वह भी सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, बल्कि समाज की सेवा के जज़्बे के साथ। यह कहानी है मैथिली ठाकुर की एक ऐसे चेहरे की, जिसने अपने गाँव, अपनी मिट्टी और अपनी पहचान से सीधा रिश्ता जोड़ा है।मैथिली ठाकुर सिर्फ एक गायिका नहीं, बल्कि एक संवेदनशील युवा हैं, जो मानती हैं कि बदलाव गीतों से शुरू होकर समाज तक पहुँच सकता है।
संगीत से मिली पहचान, समाज से मिला उद्देश्य
मैथिली अक्सर कहती हैं, “संगीत ने मुझे लोगों के दिलों से जोड़ा बचपन से ही उनका सुरों से गहरा जुड़ाव रहा है। लेकिन जब उन्होंने अपने गाँव की वास्तविकता को करीब से देखा—टूटी सड़कें, संघर्ष करता बचपन, और मूलभूत सुविधाओं से जूझते लोग—तो उन्हें एहसास हुआ कि पहचान सिर्फ गीतों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए।यही वह पल था जब मैथिली ने लोगों की समस्याओं को सुनने, समझने और उन्हें सुलझाने का संकल्प लिया। उनकी आवाज़ जो अब तक मंचों पर गूंजती थी, अब लोगों की उम्मीदों में बदलने लगी है।
गाँव की समस्याओं ने जगाई बदलाव की लौ
मैथिली बताती हैं कि जब उन्होंने अपने गाँव की सड़कों को बारिश में कीचड़ से भरा देखा, जब बच्चों को स्कूल जाने में घंटों की दिक्कत झेलते देखा, तो दिल में एक टीस उठी।उनके शब्द थेबदलाव की शुरुआत किसी को तो करनी होगी… तो क्यों नहीं मैं? यह भावना सिर्फ एक कलाकार की नहीं, बल्कि उस युवा पीढ़ी की है जो आज जिम्मेदारी लेने से नहीं डरती।
25 की उम्र में राजनीति एक साहसिक फैसला
जहाँ अधिकतर लोग 25 की उम्र में करियर की दिशा तलाशते हैं, वहीं मैथिली ने जनसेवा को अपनी राह चुना। यह कदम सिर्फ साहस नहीं, बल्कि समाज के प्रति उनकी संवेदना और ज़िम्मेदारी को दर्शाता है।उनका राजनीति में आना इस सोच को मजबूत करता है कि नई पीढ़ी देश की समस्याओं को बेहतर समझती है, और समाधान के लिए नयी दृष्टि ला सकती है।
समापन: एक नई सोच का उदय
मैथिली ठाकुर का राजनीति में कदम रखना सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक संदेश है कि आज का युवा बदलाव चाहता भी है और बदलाव बन भी सकता है।उनका यह सफ़र बताता है कि जब कला, संवेदना और सेवा एक साथ मिलते हैं, तो समाज में असली परिवर्तन की शुरुआत होती है।

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