पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने वक्फ कानून को लेकर हुए हालिया बवाल पर बड़ा आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि राज्य में जो हिंसा हुई, वह “पूरी तरह से सुनियोजित” थी और इसके पीछे केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह तथा सीमा सुरक्षा बल (BSF) की मिलीभगत थी। उन्होंने दावा किया कि बांग्लादेशी उपद्रवियों को जानबूझकर सीमा पार कराकर राज्य में तनाव फैलाने की साजिश रची गई।
कोलकाता में मुस्लिम धर्मगुरुओं (इमामों) के साथ हुई बैठक में ममता बनर्जी ने इन आरोपों को दोहराते हुए केंद्र सरकार को घेरा और साफ कहा कि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस इस “जन विरोधी” वक्फ कानून के खिलाफ पूरी मजबूती से खड़ी है।
क्या है वक्फ कानून विवाद?
केंद्र सरकार ने हाल ही में वक्फ बोर्डों को लेकर कुछ संशोधन प्रस्तावित किए हैं, जिन्हें लेकर मुस्लिम समुदाय में नाराजगी है। उनका मानना है कि नए प्रावधान वक्फ संपत्तियों पर सरकारी नियंत्रण को और बढ़ाएंगे, जिससे धार्मिक संस्थानों की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा।
बंगाल में इसी कानून के विरोध में प्रदर्शन शुरू हुआ था, लेकिन बीते कुछ दिनों में ये प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिससे कई जिलों में तनाव की स्थिति बन गई।
ममता का आरोप: “बाहरी लोग फैला रहे हैं आग”
ममता बनर्जी ने अपने बयान में कहा:
“यह हिंसा किसी आम जनता ने नहीं की है। यह बाहर से आए लोगों की करतूत है। हमें जानकारी मिली है कि बांग्लादेश से कुछ उपद्रवी सीमा पार करके यहां घुसे, और इसमें BSF की भूमिका संदिग्ध है। क्या अमित शाह इसका जवाब देंगे?”
उन्होंने आगे कहा कि यह सब एक सोची-समझी राजनीतिक साजिश का हिस्सा है ताकि राज्य की कानून व्यवस्था को बदनाम किया जा सके और अल्पसंख्यकों में भय का माहौल बनाया जाए।
इमामों को दिया भरोसा, लेकिन शांति की अपील
कोलकाता में आयोजित इस विशेष बैठक में ममता बनर्जी ने मुस्लिम धर्मगुरुओं को आश्वस्त किया कि तृणमूल कांग्रेस उनके अधिकारों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा:
“हम केंद्र सरकार के इस काले कानून के खिलाफ कोर्ट तक जाएंगे। लेकिन मैं आप सबसे आग्रह करती हूं कि विरोध शांतिपूर्ण ढंग से करें। कोई भी ऐसा कदम न उठाएं जिससे हमें नुकसान हो।”
राजनीतिक घमासान तेज
ममता बनर्जी के इस बयान के बाद सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। बीजेपी नेताओं ने उनके आरोपों को “बेतुका” और “राजनीतिक ध्यान भटकाने की कोशिश” बताया है।
बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा:
“जब भी ममता बनर्जी की सरकार असफल होती है, वो केंद्र सरकार पर आरोप लगाना शुरू कर देती हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि बंगाल में कानून व्यवस्था ध्वस्त हो चुकी है।”
वहीं कांग्रेस और वामपंथी दलों ने भी ममता की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। उनका कहना है कि राज्य सरकार को पहले हिंसा रोकने की जिम्मेदारी निभानी चाहिए, ना कि सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलना चाहिए।
मुस्लिम समाज में मिली-जुली प्रतिक्रिया
जहां एक ओर कई इमामों और मुस्लिम संगठनों ने ममता बनर्जी की बातों को सराहा है, वहीं कुछ बुद्धिजीवियों का मानना है कि ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक बयानबाज़ी से बचना चाहिए।
कोलकाता के वरिष्ठ इस्लामिक विद्वान मुफ्ती अब्दुल रहमान ने कहा:
“हमें अपने हक की लड़ाई जरूर लड़नी है, लेकिन सड़कों पर हिंसा या राजनीतिक बयानबाज़ी से नहीं। हमें अपने मतभेद संविधान और लोकतांत्रिक माध्यमों से व्यक्त करने चाहिए।”
क्या कहती है केंद्र सरकार?
केंद्र की तरफ से इस मुद्दे पर अब तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। हालांकि सूत्रों का कहना है कि गृह मंत्रालय ममता बनर्जी के आरोपों को गंभीरता से नहीं ले रहा है और इसे “राजनीतिक ड्रामा” के तौर पर देखा जा रहा है।
ममता बनर्जी ने जिस अंदाज में केंद्र सरकार और BSF पर हमला बोला है, उससे एक बार फिर पश्चिम बंगाल की राजनीति गरमा गई है। लेकिन असली जरूरत है – शांति, संवाद और कानूनी रास्तों से समाधान की। धर्म, राजनीति और कानून जब एक-दूसरे में उलझते हैं, तो सबसे ज्यादा नुकसान आम जनता को ही होता है।
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