मोदी सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए जनगणना के साथ-साथ जातिगत जनगणना को भी हरी झंडी दे दी है। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार से इस फैसले पर पारदर्शिता और आरक्षण में बढ़ोतरी की मांग की है। जानिए इस फैसले से जुड़ी पूरी जानकारी।
मोदी सरकार ने दी जातिगत जनगणना को मंजूरी
केंद्र सरकार ने जनगणना (Census) के साथ-साथ जातिगत जनगणना (Caste Census) को भी शामिल करने का ऐतिहासिक फैसला लिया है। हाल ही में हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में इस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई। सरकार के इस फैसले ने देश की राजनीति में नई हलचल पैदा कर दी है। एक ओर जहां इसे सामाजिक न्याय की दिशा में बड़ा कदम बताया जा रहा है, वहीं विपक्षी दल इसे अपनी जीत करार दे रहे हैं।
ओवैसी ने जातिगत जनगणना पर उठाए सवाल
AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने केंद्र सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए इससे जुड़ी कई अहम मांगें भी रखीं। उन्होंने कहा, “जातिगत जनगणना से यह जानना जरूरी है कि किस जाति की स्थिति क्या है — कौन विकसित है और कौन अब भी पीछे है। इससे सकारात्मक कार्रवाई और न्याय संभव हो सकेगा।”
ओवैसी ने केंद्र सरकार से पूछा कि जातिगत जनगणना की शुरुआत कब से होगी, इसकी टाइमलाइन क्या होगी, और यह रिपोर्ट कब तक सामने आएगी। उन्होंने यह भी कहा कि केवल 27% पर OBC आरक्षण रोक देना नाकाफी है और जातिगत आंकड़ों के आधार पर आरक्षण की सीमा 50% से ऊपर ले जाने के लिए संसद में बिल लाया जाना चाहिए।
आजादी के बाद पहली बार जातिगत जनगणना
भारत के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय स्तर पर जातिगत जनगणना की जाएगी। अब तक की सभी जनगणनाओं में जातिगत आंकड़ों को शामिल नहीं किया गया था। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 के तहत जनगणना केंद्र का विषय है और इसे 7वीं अनुसूची की संघ सूची के 69वें क्रमांक पर रखा गया है।
हालांकि, बिहार जैसे कुछ राज्यों ने अपने स्तर पर पहले ही जातिगत सर्वेक्षण कर लिया है। अब केंद्र सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय जनगणना में शामिल करने के बाद यह एक बड़ा सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन साबित हो सकता है।
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