Supreme Court पर निशिकांत दुबे के बयान पर मौलाना साजिद राशीदी की तीखी प्रतिक्रिया

हाल ही में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले पर अपने बयान से सियासी हलकों में हलचल मचा दी। उनके बयान में सुप्रीम कोर्ट पर उठाए गए सवाल और उसे लेकर उनकी आपत्ति ने राजनीतिक माहौल को गरमा दिया। लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि इस बयान के बाद मौलाना साजिद राशीदी जैसे धर्मगुरुओं ने कैसे प्रतिक्रिया दी।

निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसलों को लेकर अपनी असहमति जताते हुए यह कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपनी दखलअंदाजी से भारतीय राजनीति और संविधान का अपमान किया है। उन्होंने अदालत के फैसलों को लेकर अपनी चिंता व्यक्त की और यह सवाल उठाया कि क्या अदालत को अपनी सीमाओं का उल्लंघन करने का अधिकार है?

निशिकांत दुबे का बयान

निशिकांत दुबे का यह बयान सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद आया था जिसमें कोर्ट ने एक विशेष मामले में सरकार की नीति और फैसलों पर आपत्ति जताई थी। दुबे ने कहा, “हमारे संविधान में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सर्वोच्च स्थान दिया गया है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट इस प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहा है।” उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले स्पष्ट रूप से सरकार की नीतियों के खिलाफ जाते हैं और इस तरह से न्यायपालिका को अपनी सीमाओं में रहकर काम करना चाहिए।

उनका यह बयान सोशल मीडिया पर तेजी से फैल गया और राजनीतिक गलियारों में भी चर्चा का विषय बन गया। बीजेपी नेताओं ने इस बयान का समर्थन किया, जबकि विपक्षी दलों ने इसे संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हमला करार दिया।

मौलाना साजिद राशीदी की प्रतिक्रिया

निशिकांत दुबे के इस बयान पर मौलाना साजिद राशीदी ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। मौलाना साजिद राशीदी, जो एक प्रसिद्ध धार्मिक नेता हैं और समाजिक मुद्दों पर अपनी स्पष्ट राय रखते हैं, ने कहा, “जब एक सांसद जैसे निशिकांत दुबे न्यायपालिका के फैसलों पर सवाल उठाते हैं, तो यह केवल संविधान और लोकतंत्र की प्रतिष्ठा को ही नुकसान नहीं पहुंचाता, बल्कि यह समाज में असंतोष और अशांति को भी बढ़ावा देता है।”

उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट भारत की सबसे उच्चतम न्यायिक संस्था है, और यदि कोई भी व्यक्ति या पार्टी अदालत के फैसलों को लेकर सवाल उठाती है, तो यह न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करने का प्रयास होता है। मौलाना राशीदी ने यह भी कहा कि संविधान में न्यायपालिका का अधिकार स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है और किसी को भी इस पर उंगली उठाने का अधिकार नहीं है।

धार्मिक दृष्टिकोण से मौलाना का बयान

मौलाना साजिद राशीदी ने आगे कहा, “धार्मिक दृष्टिकोण से भी हम यह मानते हैं कि न्यायपालिका का कार्य निष्पक्ष और न्यायपूर्ण तरीके से लोगों को न्याय दिलाना है। जब हम किसी भी व्यक्ति या संस्थान को अधिकारों से वंचित करते हैं, तो हम समाज के मूलभूत सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं।”

उन्होंने बीजेपी सांसद से अपील की कि वे अपनी टिप्पणियों से न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह न उठाएं। मौलाना ने यह भी कहा कि लोकतंत्र में सभी संस्थाओं का स्वतंत्र होना जरूरी है और न्यायपालिका का अपनी सीमा में रहते हुए काम करना हमारे देश के लिए सर्वोत्तम है।

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राजनीतिक संदर्भ में बयान की अहमियत

निशिकांत दुबे के बयान का राजनीतिक संदर्भ भी महत्वपूर्ण है। बीजेपी और सुप्रीम कोर्ट के बीच मतभेदों का इतिहास रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकार की नीतियों और कानूनों पर सवाल उठाए हैं, जिससे राजनीतिक दिग्गजों में असंतोष देखा गया है। हालांकि, न्यायपालिका का यह अधिकार है कि वह संविधान के अनुसार मामलों की सुनवाई करें और सरकार के किसी भी निर्णय पर टिप्पणी करें यदि वह जनहित में न हो।

बीजेपी के कुछ नेता ऐसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के खिलाफ अपनी आवाज उठाते हैं, जबकि विपक्षी दल इसे लोकतंत्र और संविधान की रक्षा के लिए आवश्यक मानते हैं। इस संदर्भ में मौलाना साजिद राशीदी का बयान स्पष्ट रूप से न्यायपालिका के समर्थन में था, जो दिखाता है कि धार्मिक और सामाजिक नेता भी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को लेकर जागरूक हैं।

राजनीति और न्यायपालिका के बीच संतुलन

निशिकांत दुबे का बयान और मौलाना साजिद राशीदी की प्रतिक्रिया इस बात को उजागर करती है कि भारत में राजनीति और न्यायपालिका के बीच हमेशा एक संतुलन की आवश्यकता रहती है। जबकि राजनीतिक दलों का काम सरकार बनाने और नीतियां बनाने का है, वहीं न्यायपालिका का दायित्व है कि वह कानून और संविधान के अनुसार न्याय दिलाए।

मौलाना साजिद राशीदी जैसे समाजिक और धार्मिक नेता जब न्यायपालिका का समर्थन करते हैं, तो यह देश के नागरिकों को यह संदेश देता है कि संविधान और न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा करना सभी का कर्तव्य है। यही हमारे लोकतंत्र की वास्तविक ताकत है।

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