वक्फ अधिनियम को लेकर देश की राजनीति एक बार फिर गर्म हो गई है। ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) प्रमुख और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने इस कानून को लेकर गंभीर आपत्तियाँ दर्ज की हैं। उन्होंने वक्फ अधिनियम को “काला कानून” करार देते हुए कहा है कि यह कानून मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है और मुस्लिम समुदाय की संपत्तियों पर एक नियोजित हमला है।
क्या कहा ओवैसी ने?
अपने हालिया बयान में ओवैसी ने कहा,
“यह काला कानून असंवैधानिक है क्योंकि यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। हमारी पार्टी और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की शुरुआत से ही यह राय रही है कि यह कानून वक्फ को बचाने के लिए नहीं, बल्कि उसे समाप्त करने के लिए लाया गया है।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार द्वारा लाए गए संशोधनों से वक्फ की संरचना और उसकी स्वायत्तता कमजोर हुई है। ओवैसी के अनुसार, इस कानून में 40 से 45 संशोधन किए गए हैं, जिनमें से अधिकांश वक्फ के हितों के खिलाफ हैं।
“संघवाद पर हमला है यह कानून”
ओवैसी ने इस कानून को भारत के संघीय ढांचे के खिलाफ बताया। उनका कहना है कि जब केंद्र सरकार ऐसे नियम बनाती है जो राज्य स्तर पर चलने वाले वक्फ बोर्ड को कमजोर करते हैं, तो यह सीधा संघीय व्यवस्था पर प्रहार है।
“जब भारत सरकार ऐसे नियम बनाती है जो वक्फ को कमजोर करते हैं, तो यह संघवाद के सिद्धांतों का उल्लंघन है। वक्फ की स्वतंत्रता को खत्म करने की यह साजिश है।”
क्या है AIMPLB का रुख?
AIMIM प्रमुख ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) के साथ मिलकर इस कानून के खिलाफ कानूनी और लोकतांत्रिक दोनों स्तरों पर लड़ाई जारी रखेगी।
“हम AIMPLB के हर विरोध प्रदर्शन में उनका समर्थन करेंगे। यह केवल एक धार्मिक मुद्दा नहीं है, बल्कि संविधान, अधिकार और न्याय का सवाल है।”
AIMPLB पहले से ही वक्फ अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन और जनजागरण अभियान चला रही है। अब AIMIM के खुले समर्थन से इस मुद्दे को और बल मिल सकता है।
वक्फ अधिनियम: विवाद क्यों?
वक्फ अधिनियम उन संपत्तियों से संबंधित है जो मुस्लिम समुदाय द्वारा धार्मिक, धर्मार्थ या सामाजिक उद्देश्यों के लिए दी जाती हैं। इन संपत्तियों का प्रबंधन वक्फ बोर्ड के माध्यम से किया जाता है, जो राज्य सरकारों के अधीन होते हैं।
हालांकि, नए संशोधनों के तहत केंद्र सरकार को वक्फ से जुड़ी नियुक्तियों, परिसंपत्तियों और नीतियों पर अधिक नियंत्रण मिल गया है। वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता घट रही है और सरकार की भूमिका बढ़ रही है। यही कारण है कि मुस्लिम संगठन और कई राजनीतिक दल इस कानून को मुस्लिम समुदाय के अधिकारों पर हमला मान रहे हैं।
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समुदाय की चिंता
वक्फ संपत्तियाँ न केवल धार्मिक कार्यों के लिए बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और समाजसेवा जैसे कार्यों के लिए भी उपयोग होती रही हैं। यदि इन संपत्तियों पर सरकार का सीधा नियंत्रण हो जाता है, तो समुदाय का भरोसा वक्फ बोर्ड पर से उठ सकता है।
ओवैसी का कहना है कि यह कानून वक्फ संपत्तियों को धीरे-धीरे सरकारी नियंत्रण में लेने की योजना का हिस्सा है, जिससे समुदाय के सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थानों की स्वतंत्रता पर असर पड़ेगा।
आगे की राह
AIMIM और AIMPLB इस कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कानूनी चुनौती देने की तैयारी में हैं। ओवैसी ने साफ कहा है कि यह केवल एक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि एक संगठित और निरंतर विरोध अभियान होगा।
“हम इस कानून को अदालत में चुनौती देंगे, सड़कों पर प्रदर्शन करेंगे और संसद में भी आवाज उठाएंगे। जब तक वक्फ की सुरक्षा की गारंटी नहीं मिलती, तब तक हमारी लड़ाई जारी रहेगी।”
वक्फ अधिनियम को लेकर AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी का बयान एक नई बहस की शुरुआत कर चुका है। उन्होंने जिस तरह से इसे “काला कानून” करार दिया है, वह केंद्र सरकार के लिए राजनीतिक और सामाजिक मोर्चे पर नई चुनौती खड़ी कर सकता है। मुस्लिम समाज के अधिकारों, धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान में दिए गए संघीय ढांचे की रक्षा की बात करते हुए ओवैसी ने इस कानून के खिलाफ एक बड़ा जन आंदोलन खड़ा करने का संकेत दे दिया है।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या केंद्र सरकार इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया देती है या फिर यह विरोध मजबूत जन समर्थन के साथ बड़ा रूप लेता है।
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